Wednesday, November 24, 2010
बचपन के वो दिन याद आते है
बचपन का ज़माना होता था ,
खुशिओं का खज़ाना होता था .
चाहत चाँद को पाने की ,
दिल तितली का दीवाना होता था .
रोने की वजह न होती थी ,
हसने का बहाना होता था .
ख़बर न थी कुछ सुबहो की ,
न शामो का ठिकाना होता था .
दादी की कहानी होती थी ,
पारीओं का फ़साना होता था .
पेड़ की शाखे छुते थे ,
मिटटी का खिलौना होता था .
गम की जुबान न होती थी ,
न ज़ख्मो का पयमाना होता था .
बारिश में कागज़ की कश्ती ,
हर मौसम सुहाना होता था .
वो खेल वो साथी होते थे ,
न रिश्ता कोई निभाना होता था ।
पापा की वो डाटें ,
गलती पर मम्मी का मनाना होता था !!
गम की जुबां ना होती थी , ना ज़ख्मो का पैमाना होता था !!
रोने की वजह ना होती थी ना हंसने का बहाना होता था !!
अब नहीं रही वो जिंदिगी ,
जैसा बचपन का ज़माना होता था!!
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