My Blog List

Saturday, June 18, 2011

मेरी माँ


उमर भर सीने से लगा कर पला है माँ ने
ग़लत बातो पे थोड़ा थोड़ा मारा है माँ ने ,

अभी तक वो बचपने की यादें हैं बाकी
और वो बचपने की बातें हैं बाकी ,

के जब में ने बोला था माँ पहली बार
माँ की आँखों में भरा था कितना प्यार ,

पैदा हुआ था तो कुछ नहीं था में
माँ की वजह से आज हूँ क्या क्या में ,

लालच तो कुछ नहीं मेरी माँ को मगर
अच हो जो देदूँ दिल तोहफे में अगर ,

माँ को छोड़ते हैं ऐसे कुछ लोग होते हैं
फिर औरो के लिये वो हमेशा ख़ुस होते हैं,

कुछ लोगो के लिए माँ को छोड़ते नहीं
चाहे कुछ हो जाये मुंह मोड़ते नहीं ,

माँ से हमेशा हमें सुख मिलते हैं
फिर भी उस को हमसे दुःख मिलते हैं ,

काश कुर्बान करूं में सब उस की सदा पे
और वो मुझे प्यार करे मेरी इससी अदा पे ,

माँ से मुझे मेरी कोई जुदा करे
करू प्यार किसी और से खुदा कराय !!

Tuesday, March 15, 2011

कलयुग की कविता


हे कृष्ण तू इस कलयुग में आ कर तो दिखा !

तुने 18 साल की उम्र में मामा कंस को मारा ,
बिन लादेन को हाथ लगा कर तो दिखा,

तुने अर्जुन को तो सारी गीता सुनायी ,
मेरे प्रोजेक्ट मेनेजर से एक बार बात कर के तो दिखा ,

तुने तो अर्जुन का सारथी बनके पांडवों को जिताया,
इंडियन क्रिकेट टीम का कोच बन के वर्ल्ड कप जिताके तो दिखा ,

तुने भरी महफ़िल में द्रौपदी को सारी पहनाई ,
मल्लिका शेरावत को एक जोड़ी कपडे पहना के तो दिखा ,

तुने गोकुल की 1600 गोपियाँ पटाई ,
मेरी कंपनी की सिर्फ एक लड़की को पटा कर तो दिखा,

हे कृष्ण तू इस कलयुग में आ कर तो दिखा !!

Sunday, February 6, 2011

चलना हमारा काम है !!


गति प्रबल पैरों में भरी फिर क्यों रहूं दर दर खडा
जब आज मेरे सामने है रास्ता इतना पडा
जब तक न मंजिल पा सकूँ तब तक मुझे न विराम है
चलना हमारा काम है ।

कुछ कह लिया कुछ सुन लिया कुछ बोझ अपना बँट गया
अच्छा
हुआ
तुम मिल गई कुछ रास्ता ही कट गया
क्या राह में परिचय कहूँ राही हमारा नाम है

चलना हमारा काम है ।


इस विशद विश्व-प्रहार में किसको नहीं बहना पडा
सुख-दुख हमारी ही तरह किसको नहीं सहना पडा

फिर व्यर्थ क्यों कहता फिरूँ मुझ पर विधाता वाम है

चलना हमारा काम है ।

मैं पूर्णता की खोज में दर-दर भटकता ही रहा
प्रत्येक पग पर कुछ न कुछ रोडा अटकता ही रहा
निराशा क्यों मुझे? जीवन इसी का नाम है
चलना हमारा काम है ।

साथ में चलते रहे कुछ बीच ही से फिर गए
गति न जीवन की रूकी जो गिर गए सो गिर गए
रहे हर दम उसी की सफलता अभिराम है
चलना हमारा काम है !!

Monday, December 6, 2010

ज़िंदगी उलझी रही ...!!!!



खौफ़ से सहमी हुई है खून से लथपथ पड़ी
अब कोई मरहम करो घायल पड़ी है ज़िंदगी।

पुर्जा-पुर्जा उड़ गए कुछ लोग कल बारुद से
आज आई है खबर कि अब बढ़ी है चौकसी।

किस से अब उम्मीद रक्खें हम हिफ़ाजत की यहाँ
खेत की ही बाड़ सारा खेत देखो खा गई ।

यूँ तो हर मुद्दे पे संसद में बहस खासी हुई
हल नहीं निकला फ़कत हालात पर चर्चा हुई।

कौन अपना दोस्त है और कौन है दुश्मन यहाँ
बस ये उलझन थी जो सारी ज़िंदगी उलझी रही।

अपना ही घर लूटकर खुश हो रहें हैं वो ख्याल
आग घर के ही चरागों से है इस घर मे लगी।

Friday, December 3, 2010

मेरी प्यारी माँ



एक पेड़ जिसने कभी मुझे धुप लगने दी ,
अपने
आँचल में छुपा के रखा नज़र किसी की लगने दी ,
याद आते है बचपन के दिन जब तू मुझे खिलाती थी ,
हर
बार रोने पर तू ही मुझे हसती थी !!


अच्छी नींद के लिए नाजाने कहा कहा ,
से नयी लोरिया और कहानिया लती थी ,
रो
पढता है यह दिल याद करके वोह दिन ,
जब
हाथो से अपने खाना खिलाती थी !!

तेरी ऊँगली पकड़ के मैंने चलना सिखा ,
तेरी ही आँखों से यह संसार मैंने देखा ,
भगवन
खुद सका इसलिए ,
शायद
तुझे मेरे लिए भेज दिया !!

नही तो वोह भी तो है यहाँ ,
जिन्हें
लावारिस ही संसार में छोड़ दिया ,
आज
फिर तेरी गोद में सोने को दिल करे ,
तेरे
हाथो से खाने को दिल बेकरार है !!

याद
गए वोह सुन्हेरे दिन ,
दिल
आज भी उस समय में जाने को बेकरार है ,
बस
अब यादें ही रह गयी याद करने को ,
बचपन
लोट के तो नही सकता !!

तुझे
कितना चहता हूँ माँ ,
तुझे
कभी यह बाता नही सकता ,
मेरा
हर सांस तेरा एहसान है,
जब
चाहे इसे ले लेना ,
छोड़
के जाना कभी चाहे ,
मेरी
सांसे भी मुझसे ले लेना !!!!

Tuesday, November 30, 2010

<<<< दिल की आवाज़ >>>>



आज ये दिल कहेता है ,








तू
अब लौट चल गुज़रती नहीं है ,

मेरी कोई भी पल मुझको यहाँ से ले चल , आज ये दिल

कहेता है , तू अब लौट चल


वोह मंजिल यहाँ नहीं मिलेगी , जिसे तुझे तलाश है ,

वोह मंज़र यहाँ नहीं दिखेगा ,

जो
तेरे दिल के आस पास है ,

मिलती
नहीं है मुझे यहाँ कोई भी हल , मुझको

यहाँ से ले चल , आज ये दिल कहेता है ,

तू
अब लौट चल


वैसे लोग यहाँ नहीं है ,

जिनको
धुंड रहा है तू,

यहाँ
लोग वैसे नहीं है,

जिनसे
जुड़ रहा है तू,

बनेगा यहाँ मेरे सपनो का महल,

मुझको
यहाँ से ले चल,

आज
ये दिल कहेता है ,

तू अब लौट चल .

Monday, November 29, 2010

← पहला Question देख कर वह – वह – वह – वह हो गयी →



पहला Question देख कर वह वह वह वह हो गयी ,

तीन लाइन लिख कर 100 नंबर की छह हो गयी .

दूसरा Question देखकर डरने लगा दिल ,

पचास
नंबर आना भी लगने लगा मुस्किल ,

तीसरा Question देख कर गले में अटका दम ,

तीस
नंबर आने का भी चांस हुआ ख़त्म .

चोथा Question देख कर उड़ गए मेरे होश .

खली
कोप्ये छोड़ कर हो गया में बेहोश .

पांचवा Question देखने की नोबत ही आई ,

जेब से पर्ची टपक गयी में पकड़ा गया भाई - में पकड़ा गया भाई !